विजयनगर साम्राज्य: एक समृद्ध दक्षिणी राज्य

विजयनगर अथवा ‘’विजय का शहर’’ एक शहर और एक साम्राज्य, दोनों के लिए प्रयुक्त नाम था. विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का एक महान साम्राज्य था, जिसने लगभग तीन शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना को आकार दिया। इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने 14वीं शताब्दी में की थी। इस साम्राज्य ने अपने उत्कृष्ट प्रशासन, सैन्य शक्ति, कला, और वास्तुकला के लिए विश्वभर में ख्याति प्राप्त की। इस लेख में हम विजयनगर साम्राज्य के इतिहास, उसकी सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि, और उसके पतन के कारणों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

विट्ठल मंदिर रथ

विजयनगर साम्राज्य का उदय

हम्पी की खोज

हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियंता तथा पुराविद कर्नल कॉलिन मैकेंजी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे. मैकेंजी, जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत थे,

कर्णाटक सम्राज्युम :-
समकालीन लोगो ने विजयनगर साम्राज्य को कर्णाटक सम्राज्युम की संज्ञा दी।

विजयनगर की लोक प्रचलित परम्पराओ में दक्कन के सुल्तानों को अश्वपति या घोड़ो के स्वामी तथा रायो को नरपति या लोगों के स्वामी की संज्ञा दी।

प्रारंभिक इतिहास और स्थापना

संगम वंश का उदय

विजयनगर साम्राज्य की स्थापना हरिहर और बुक्का राय ने 1336 ईस्वी में की थी। ये दोनों भाई पहले काकतीय साम्राज्य के सामंत थे, लेकिन बाद में उन्होंने स्वतंत्र साम्राज्य की स्थापना की। हरिहर प्रथम ने संगम वंश की स्थापना की और विजयनगर को राजधानी बनाया।
संगम राजवंश भारतीय कला एवं संस्कृति के विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। संगम वंश के शासकों ने अपने दरबार में महान विद्वानों और कवियों को जगह दी। इससे उस समय साहित्य के क्षेत्र में काफ़ी प्रगति हुई। इसके साथ ही इस वंश के शासकों ने विभिन्न धर्मों के लोगों को भी अपने यहाँ शरण दी। इससे भारत में समावेशी संस्कृति के निर्माण को बढ़ावा मिला।

हरिहर और बुक्का का शासन

हरिहर प्रथम का शासनकाल

हरिहर प्रथम (1336-1356 ईस्वी) ने विजयनगर साम्राज्य की नींव रखी और अपने शासनकाल में साम्राज्य को संगठित और विस्तृत किया। उन्होंने प्रशासनिक सुधार लागू किए और एक शक्तिशाली सैन्य शक्ति का गठन किया।

हरिहर प्रथम का शासनकाल

हरिहर प्रथम के बाद उनके भाई बुक्का राय (1356-1377 ईस्वी) ने शासन संभाला। उन्होंने साम्राज्य को और विस्तारित किया और आर्थिक और सांस्कृतिक उन्नति को प्रोत्साहित किया। उनके शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य ने दक्षिण भारत के अधिकांश हिस्सों पर नियंत्रण स्थापित किया।

विजयनगर साम्राज्य का स्वर्ण युग

कृष्ण देवराय प्रथम और कृष्ण देवराय द्वितीय का शासन

कृष्ण देवराय प्रथम का शासनकाल

कृष्ण देव राय प्रथम
विजयनगर साम्राज्य के सर्वाधिक शक्तिशाली व समृद्ध शासक कृष्ण देवराय प्रथम (1406-1422 ईस्वी) ने विजयनगर साम्राज्य को एक मजबूत और समृद्ध राज्य बनाया। उन्होंने सिंचाई व्यवस्था को सुधारा और कृषि उत्पादन को बढ़ावा दिया। इसके अलावा, उन्होंने कला और साहित्य को प्रोत्साहित किया।

कृष्ण देवराय द्वितीय का शासनकाल

कृष्ण देवराय द्वितीय (1424-1446 ईस्वी) ने अपने पिता की नीतियों को जारी रखा और साम्राज्य की समृद्धि को और बढ़ाया। उनके शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य ने अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत किया और बाहरी आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिकार किया।

कला, साहित्य और संस्कृति

वास्तुकला और मंदिर निर्माण

गोपुरम- विजयनगर साम्राज्य
विजयनगर साम्राज्य अपने अद्वितीय वास्तुकला और भव्य मंदिरों के लिए प्रसिद्ध है। हम्पी, जो विजयनगर साम्राज्य की राजधानी थी, अपने उत्कृष्ट मंदिरों और वास्तुकला के लिए विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। विठ्ठल मंदिर, विरुपाक्ष मंदिर, और हजारा राम मंदिर विजयनगर की वास्तुकला की अद्वितीय कृतियाँ हैं।
लोटस कमल महल

साहित्य और संगीत

विजयनगर साम्राज्य ने तमिल, तेलुगु, कन्नड़ और संस्कृत साहित्य को बहुत प्रोत्साहित किया। इस काल में कई महान कवि और लेखक उत्पन्न हुए, जिन्होंने साहित्यिक कृतियों का निर्माण किया। इसके अलावा, संगीत और नृत्य कला का भी अभूतपूर्व विकास हुआ।

विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि

व्यापार और वाणिज्य , (आंतरिक और बाह्य व्यापार)

विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण उसका विस्तृत व्यापार बाज़ार था। साम्राज्य ने आंतरिक और बाह्य व्यापार को प्रोत्साहित किया। दक्षिण भारत के विभिन्न बंदरगाहों से अरब, फारस, और यूरोप के देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए गए। इस व्यापार से विजयनगर साम्राज्य को आर्थिक समृद्धि प्राप्त हुई।

डोमिंगो पेस के अनुसार विजयनगर साम्राज्य के बाज़ार का एक सजीव विवरण: आगे जाने पर एक चौड़ी और सुंदर गली पाते हैं… इस गली में कई व्यापारी रहते हैं और वहाँ आप सभी प्रकार के माणिक्य, और हीरे, और पन्ने, और मोती और छोटे मोती, और वस्त्र, और पृथ्वी पर होने वाली हर वस्तु जिसे आप खरीदना चाहेंगे, पाएँगे। फिर हर शाम को आप एक मेला देख सकते हैं जहाँ से कई सामान्य घोड़े तथा टट्टू और कई तुरंज और नींबू और संतरे और अंगूर और उद्यान में उगने वाली हर प्रकार की वस्तुएँ और लकड़ी मिलती है : इस गली में आप हर वस्तु पा सकते हैं। और सामान्य रूप से वह शहर का वर्णन “विश्व के सबसे अच्छे संभरण वाले शहर” के रूप में करता है जहाँ बाज़ार ” चावल, गेहूँ, अनाज, भारतीय मकई और कुछ मात्रा में जौ तथा सेम, मूँग, दालें, काला चना जैसे खाद्य पदार्थों से भरे रहते थे” जो सभी सस्ते दामों पर तथा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध रहते थे। फर्नाओ नूनिज़ के अनुसार विजयनगर के बाज़ार “प्रचुर मात्रा में फलों, अंगूरों और संतरों, नींबू, अनार, कटहल तथा आम से भरे रहते थे और सभी बहुत सस्ते । ” बाज़ारों में मांस भी बड़ी मात्रा में बिकता था। नूनि उल्लेख करता है कि “भेड़-बकरी का मांस, सूअर, मृगमांस, तीतर मांस, खरगोश, कबूतर, बटेर और सभी प्रकार के पक्षी, चिड़ियाँ, चूहे तथा बिल्लियाँ और छिपकलियाँ” बिसनग (विजयनगर ) के बाजारों में बिकती थीं। विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण उसका विस्तृत व्यापार बाज़ार था। साम्राज्य ने आंतरिक और बाह्य व्यापार को प्रोत्साहित किया। दक्षिण भारत के विभिन्न बंदरगाहों से अरब, फारस, और यूरोप के देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए गए। इस व्यापार से विजयनगर साम्राज्य को आर्थिक समृद्धि प्राप्त हुई।

कृषि और सिंचाई

विजयनगर साम्राज्य ने कृषि और सिंचाई में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। देवराय प्रथम ने सिंचाई व्यवस्था को सुधारा और नए जलाशयों और नहरों का निर्माण कराया। इससे कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई और साम्राज्य की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।

विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति

विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति अत्यंत संगठित और शक्तिशाली थी। साम्राज्य की सेना में पैदल सेना, घुड़सवार सेना, हाथी सेना, और नौसेना शामिल थीं। साम्राज्य ने अपनी सीमाओं की सुरक्षा और विस्तार के लिए एक सशक्त सैन्य प्रणाली का निर्माण किया।

युद्ध नीति और किलेबंदी

विजयनगर साम्राज्य ने अपनी युद्ध नीति में कुशल रणनीतियों का प्रयोग किया। उन्होंने अपने साम्राज्य की सीमाओं को मजबूत करने के लिए किलेबंदी की और विभिन्न महत्वपूर्ण स्थानों पर किले बनाए। इसके अलावा, साम्राज्य ने अपने सैन्य अभियानों में आक्रामक और रक्षात्मक दोनों रणनीतियों का प्रयोग किया।

विजयनगर साम्राज्य का पतन

तालीकोटा का युद्ध और बाहरी आक्रमण

तालीकोटा का युद्ध

तालीकोट या राक्षसी-तांगड़ी का युद्ध:– यह स्थिति विजयनगर के विरुद्ध दक्कन सल्तनतों के बीच मैत्री – समझौते के रूप में परिणत हुई। 1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी – तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया। अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से और बाद में चन्द्रगिरी ( तिरुपति के समीप ) से शासन किया।

प्रशासनिक कमजोरियाँ

विजयनगर साम्राज्य के पतन का एक अन्य कारण प्रशासनिक कमजोरियाँ थीं। तालीकोटा के युद्ध के बाद साम्राज्य के शासक प्रशासनिक नियंत्रण को बनाए रखने में असफल रहे। इससे साम्राज्य में अराजकता फैल गई और आंतरिक विद्रोहों ने साम्राज्य की स्थिरता को और कमजोर किया।

महानवमी डिब्बा

इस क्षेत्र की कुछ अधिक विशिष्ट संरचनाओं का नामकरण भवनों के आकार और साथ ही उनके कार्यों के आधार पर किया गया है। ” राजा का भवन” नामक संरचना अंत: क्षेत्र में सबसे विशाल है परंतु इसके राजकीय आवास होने का कोई निश्चित साक्ष्य नहीं मिला है। इसके दो सबसे प्रभावशाली मंच हैं, जिन्हें सामान्यत: “सभा मंडप ” तथा ” महानवमी डिब्बा ” कहा जाता है। पूरा क्षेत्र ऊँची दोहरी दीवारों से घिरा है और इनके बीच में एक गली है। सभा मंडप एक ऊँचा मंच है जिसमें पास-पास तथा निश्चित दूरी पर लकड़ी के स्तंभों के लिए छेद बने हुए हैं। इसमें दूसरी मंज़िल, जो इन स्तंभों पर टिकी थी, तक जाने के लिए सीढ़ी बनी हुई थी। स्तंभों के एक दूसरे से बहुत पास-पास होने से बहुत कम खुला स्थान बचता होगा और इसलिए यह स्पष्ट नहीं है कि यह मंडप किस प्रयोजन के लिए बनाया गया था। शहर के सबसे ऊँचे स्थानों में से एक पर स्थित ” महानवमी डिब्बा ” एक विशालकाय मंच है जो लगभग 11000 वर्ग फीट के आधार से 40 फीट की ऊँचाई तक जाता है। ऐसे साक्ष्य मिले हैं जिनसे पता चलता है कि इस पर एक लकड़ी की संरचना बनी थी। मंच का आधार उभारदार उत्कीर्णन से पटा पड़ा है। इस संरचना से जुड़े अनुष्ठान, संभवतः सितंबर तथा अक्टूबर के शरद मासों में मनाए जाने वाले दस दिन के हिंदू त्यौहार, जिसे दशहरा (उत्तर भारत), दुर्गा पूजा (बंगाल में ) तथा नवरात्री या महानवमी (प्रायद्वीपीय भारत में) नामों से जाना जाता है, के महानवमी (शाब्दिक अर्थ, महान नवाँदिवस) के अवसर पर निष्पादित किए जाते थे। इस अवसर पर विजयनगर शासक अपने रुतबे ताक़त तथा अधिराज्य का प्रदर्शन करते थे।
महानवमी डिब्बा- विजयनगर साम्राज्य

आर्थिक संकट

आर्थिक संकट ने भी विजयनगर साम्राज्य के पतन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। तालीकोटा के युद्ध के बाद व्यापारिक मार्गों पर बाहरी आक्रमणों ने व्यापार को प्रभावित किया। इसके अलावा, प्रशासनिक भ्रष्टाचार और अत्यधिक करों ने साम्राज्य की आर्थिक स्थिति को और बिगाड़ दिया।

निष्कर्ष

विजयनगर साम्राज्य भारतीय इतिहास का एक गौरवशाली अध्याय है। इसके शासकों ने कला, साहित्य, वास्तुकला, और सैन्य शक्ति में अद्वितीय योगदान दिया। हालांकि तालीकोटा के युद्ध और प्रशासनिक कमजोरियों के कारण साम्राज्य का पतन हुआ, लेकिन उसकी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर आज भी जीवित है। विजयनगर साम्राज्य की उपलब्धियाँ और उसकी समृद्धि भारतीय इतिहास में हमेशा याद की जाएंगी और उसका प्रभाव भारतीय संस्कृति पर सदैव बना रहेगा।

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