विजयनगर अथवा ‘’विजय का शहर’’ एक शहर और एक साम्राज्य, दोनों के लिए प्रयुक्त नाम था. विजयनगर साम्राज्य दक्षिण भारत का एक महान साम्राज्य था, जिसने लगभग तीन शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक संरचना को आकार दिया। इसकी स्थापना हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने 14वीं शताब्दी में की थी। इस साम्राज्य ने अपने उत्कृष्ट प्रशासन, सैन्य शक्ति, कला, और वास्तुकला के लिए विश्वभर में ख्याति प्राप्त की। इस लेख में हम विजयनगर साम्राज्य के इतिहास, उसकी सांस्कृतिक और आर्थिक समृद्धि, और उसके पतन के कारणों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
विजयनगर साम्राज्य का उदय
हम्पी की खोज
हम्पी के भग्नावशेष 1800 ई. में एक अभियंता तथा पुराविद कर्नल कॉलिन मैकेंजी द्वारा प्रकाश में लाए गए थे. मैकेंजी, जो ईस्ट इंडिया कंपनी में कार्यरत थे,
कर्णाटक सम्राज्युम :-
समकालीन लोगो ने विजयनगर साम्राज्य को कर्णाटक सम्राज्युम की संज्ञा दी।
प्रारंभिक इतिहास और स्थापना
संगम वंश का उदय
हरिहर और बुक्का का शासन
हरिहर प्रथम का शासनकाल
हरिहर प्रथम का शासनकाल
विजयनगर साम्राज्य का स्वर्ण युग
कृष्ण देवराय प्रथम और कृष्ण देवराय द्वितीय का शासन
कृष्ण देवराय प्रथम का शासनकाल
कृष्ण देवराय द्वितीय का शासनकाल
कृष्ण देवराय द्वितीय (1424-1446 ईस्वी) ने अपने पिता की नीतियों को जारी रखा और साम्राज्य की समृद्धि को और बढ़ाया। उनके शासनकाल में विजयनगर साम्राज्य ने अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत किया और बाहरी आक्रमणों का सफलतापूर्वक प्रतिकार किया।
कला, साहित्य और संस्कृति
वास्तुकला और मंदिर निर्माण
साहित्य और संगीत
विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि
व्यापार और वाणिज्य , (आंतरिक और बाह्य व्यापार)
विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक समृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारण उसका विस्तृत व्यापार बाज़ार था। साम्राज्य ने आंतरिक और बाह्य व्यापार को प्रोत्साहित किया। दक्षिण भारत के विभिन्न बंदरगाहों से अरब, फारस, और यूरोप के देशों के साथ व्यापारिक संबंध स्थापित किए गए। इस व्यापार से विजयनगर साम्राज्य को आर्थिक समृद्धि प्राप्त हुई।
कृषि और सिंचाई
विजयनगर साम्राज्य की सैन्य शक्ति
युद्ध नीति और किलेबंदी
विजयनगर साम्राज्य का पतन
तालीकोटा का युद्ध और बाहरी आक्रमण
तालीकोटा का युद्ध
तालीकोट या राक्षसी-तांगड़ी का युद्ध:– यह स्थिति विजयनगर के विरुद्ध दक्कन सल्तनतों के बीच मैत्री – समझौते के रूप में परिणत हुई। 1565 में विजयनगर की सेना प्रधानमंत्री रामराय के नेतृत्व में राक्षसी – तांगड़ी (जिसे तालीकोटा के नाम से भी जाना जाता है) के युद्ध में उतरी जहाँ उसे बीजापुर, अहमदनगर तथा गोलकुण्डा की संयुक्त सेनाओं द्वारा करारी शिकस्त मिली। विजयी सेनाओं ने विजयनगर शहर पर धावा बोलकर उसे लूटा। कुछ ही वर्षों के भीतर यह शहर पूरी तरह से उजड़ गया। अब साम्राज्य का केंद्र पूर्व की ओर स्थानांतरित हो गया जहाँ अराविदु राजवंश ने पेनुकोण्डा से और बाद में चन्द्रगिरी ( तिरुपति के समीप ) से शासन किया।
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