हम्मीर देव चौहान रणथंभौर के महान शासक 1282-1301

हम्मीर देव चौहान भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण और प्रेरणादायक शासक हैं। उनकी वीरता, शौर्य और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें अमर बना दिया। इस ब्लॉग पोस्ट में हम उनके जीवन, शासन, और योगदान के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।

हम्मीर देव चौहान का परिचय (Hammir Dev Chauhan)

हम्मीर देव चौहान का जन्म 14वीं सदी के मध्य में हुआ था, विशेषकर 1273 ईस्वी के आस-पास। वे चौहान वंश के प्रमुख शासक थे। उनका जन्मस्थान सामान्यतः राजस्थान के क्षेत्र में माना जाता है, विशेष रूप से मेवाड़ या अजमेर के आसपास। हम्मीर देव चौहान ने रणथंभौर पर शासन किया था। राजस्थान में रणथंभौर के प्रतिभा संपन्न शासको में हम्मीर देव चौहान का नाम सर्वोपरी हैं। वे अपनी वीरता व सेन्य कोशल के लिए जाने जाते है।

रणथंभौर का किला, हम्मीर देव चौहान
  • हम्मीर देव चौहान का शासन काल राजस्थान के इतिहास में सबसे अच्छा व शानदार काल माना जाता हैं।
  • चन्द्रशेखर जिन्होंने हम्मीर हठ महाकाव्य की रचना की थी उनका एक दोहा इस प्रकार हैं:-

सिंह सुवन, सत्पुरुष वचन, कदली फलै इक बार, तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़ै न दूजी बार…

अथार्त:-     सिंह एक ही बार संतान को जन्म देता है. सज्जन लोग बात को एक ही बार कहते हैं । केला एक ही बार फलता है. स्त्री को एक ही बार तेल एवं उबटन लगाया जाता है अर्थात उसका विवाह एक ही बार होता है. ऐसे ही राव हमीर का हठ है. वह जो ठानते हैं, उस पर दोबारा विचार नहीं करते…

हम्मीर देव चौहान ऐसे ही हठी थे जो वो एक बार ठान लेते थे उस पर दुबारा विचार नहीं करते थे।

रणथंभौर का किला, हम्मीर देव चौहान

हम्मीर देव चौहान का प्रारंभिक जीवन

हम्मीर देव चौहान का 1283 ईस्वी में राजस्थान के चौहान वंश में हुआ था। इनके पिता का नाम जेत्र सिंह व माता का नाम रानी हिरा देवी था। उस समय इनके पिता रणथंभौर के शासक थे। जब जेत्र सिंह वर्दावस्था के कारन सेवानिर्वत हुए, तब इन्होने हम्मीर देव को अपना उत्तराधिकारी चुना, जबकि हम्मीर उनका जेष्ठ पुत्र नहीं था।

हम्मीर देव बहुत ही कम उम्र में युद्ध कला व शास्त्र कला  में निपूर्ण हो गए थे।

हम्मीर महाकव्य के अनुसार हम्मीर देव चौहान का राज्याभिषेक 1283 ईस्वी को हुआ था। हालांकि एक दुसरे सोर्से प्रबंध कोष के आनुसार उनका राज्याभिषेक 1285 ईस्वी में होना बताया गया है।

हम्मीर देव चौहान का साम्राज्य: विस्तार और विशेषताएँ

अपने पिता की मृत्यु के बाद रणथंभौर की गद्दी पर बैठा, हम्मीर देव एक योग्य, वीर और बुदिमान शासक सिद्ध हुआ। शासन का भर संभालते ही उन्होंने दिग्विजय का संपादन कर बड़ी प्रतिष्ठा पाप्त की।

भौगोलिक स्थिति और राजधानी

रणथंभौर का किला, हम्मीर देव चौहान

हम्मीर देव चौहान का साम्राज्य मुख्य रूप से राजस्थान के क्षेत्र में फैला हुआ था, जिसमें अजमेर और मेवाड़ के प्रमुख क्षेत्र शामिल थे। उनकी राजधानी का स्थान ऐतिहासिक रूप से अजमेर या चित्तौड़गढ़ में माना जाता है, जो उस समय के प्रमुख व्यापारिक और सामरिक केंद्र थे।

  • अजमेर: यह स्थान उनकी प्रशासनिक और राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र था। अजमेर की स्थिति इसकी रणनीतिक महत्वता को बढ़ाती थी, जो व्यापारिक मार्गों और संसाधनों के निकट होने के कारण था।
  • चित्तौड़गढ़: यह किला उनके साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण सैन्य और सांस्कृतिक केंद्र था। चित्तौड़गढ़ की सुरक्षा और उसकी रणनीतिक स्थिति ने साम्राज्य की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
हम्मीर देव चौहान

राजनीतिक और प्रशासनिक नीतियाँ

हम्मीर देव चौहान ने अपने शासनकाल में कई प्रभावशाली नीतियाँ अपनाईं जो उनके साम्राज्य के विस्तार और स्थिरता में सहायक थीं:

  • स्थानीय स्वशासन: उन्होंने अपने साम्राज्य के विभिन्न हिस्सों में स्थानीय शासकों और प्रमुखों को स्वायत्तता दी। इस स्वायत्तता ने स्थानीय मुद्दों के समाधान को प्रभावी बनाया और प्रशासनिक दक्षता को बढ़ाया।
  • न्यायपालिका: उन्होंने न्यायपालिका को सशक्त किया और न्यायिक सुधार किए, जिससे राज्य में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने में मदद मिली।
रणथंभौर का किला, हम्मीर देव चौहान

आर्थिक और सांस्कृतिक विकास

हम्मीर देव चौहान ने अपने शासनकाल में आर्थिक और सांस्कृतिक विकास पर भी ध्यान केंद्रित किया:

  • वाणिज्य और व्यापार: उनके शासनकाल में व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा दिया गया। उन्होंने व्यापारिक मार्गों की सुरक्षा की और व्यापारियों को प्रोत्साहित किया, जिससे साम्राज्य की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हुई।
  • सांस्कृतिक प्रोत्साहन: उन्होंने कला, साहित्य, और संस्कृति को प्रोत्साहित किया। उनके संरक्षण में कई महत्वपूर्ण साहित्यिक और सांस्कृतिक कृतियाँ उत्पन्न हुईं। उन्होंने धार्मिक स्थलों और मंदिरों के निर्माण और मरम्मत में योगदान दिया, जो उनकी सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने में सहायक रहे।

जलालुद्दी खिलजी का रणथंभौर पर आक्रमण:

1291 ईस्वी को जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली से रणथंभौर पर अधिकार की मनसा लेकर अपने सेन्य दल के साथ निकल पड़ा, जलालुद्दीन खिलजी  ने झाइन पर अपना अधिकार कर लिया (झइन) रणथंभौर के पास एक छोटा सा किला हैं जिसे रणथम्भौर का प्रवेश द्वार भी कहा जाता हैं, धीरे धीरे आगे बढ़कर जलालुद्दीन खिलजी ने रणथंभौर दुर्ग को चारो और से घेर लिया, लम्बे समय तक घेराबंदी रखने के बाद भी जलालुद्दीन खिलजी को सफलता नहीं मिली, आखिरकार 1291 ईस्वी में उसने घेराबंदी हटा कर वापस दिल्ली की और लौट गया।

अलाउद्दीन खिलजी का रणथंभौर किले पर आक्रमण

अलाउद्दीन खिलजी, दिल्ली सुलतानत का एक प्रमुख शासक, ने अपने शासनकाल के दौरान कई महत्वपूर्ण आक्रमण किए। इनमें से एक प्रमुख आक्रमण रणथंभौर किले पर था, जो उस समय की एक महत्वपूर्ण किला-क्षेत्र था।
रणमल हम्मीर देव चौहान के सेना पति

रणथंभौर किला वर्तमान राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित है। यह किला सामरिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था क्योंकि यह एक रणनीतिक स्थान पर स्थित था और राजस्थान के अनेक भागों के नियंत्रण में मददगार था।

हम्मीर देव चौहान  (Hammir Devi chauhan) एक योग्य शासक होने के साथ साथ एक हम्मीर देव एक बहादुर योद्धा भी थे, उस समय की परिस्थित को देखे तो ये कहना अनुचित होगा की वह एक शक्तिशाली शासक नहीं थे। उनकी बढती शक्ति से सब वाकिफ थे, हम्मी देव ने अपने राज्य की सीमा दूर उत्तर भारत में मेवाड़, गुजरात व दिल्ली तक फेला दी।

1296 ईस्वी में जलालुद्दीन खिलजी का भतीजा अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन खिलजी की धोखे से हत्या करके दिल्ली की राजगद्दी पर बैठा। अलाउद्दीन ने 1299 में गुजरात पर हमला किया और वहां पर विजय प्राप्त की, विजय प्राप्त करने के बाद लुट का माल अपनी सेना में बाँट दिया लुट के माल को लेकर सेना में झगडा हो गया और सेना में शामिल मंगोल सेनिको ने विद्रोह कर दिया जिसमे मुख्या नेता महुम्माद्शाह  व केब्रू  थे, इस विद्रोह का अलाउद्दीन के सेनापतियों ने दमन किया तब मुहम्मदशाह व केब्रू दोनो हम्मीर देव की शरण में चले गए।

जब इस बात का पता अलाउद्दीन खिलजी को लगा तो उसन हम्मी देव से इन्हें वापस लोटने के लिए कहा तो हम्मीर देव ने इनकार कर दिया और कहा की सरनार्थियों की रक्षा करना मेरा प्रथम धर्म हैं। इस बात से नाराज होकर अलाउद्दीन खिलजी ने रणथंभौर पर आक्रमण करने का मन बबन लिया।

1299 ईस्वी में लौद्दीन खिलजी ने नुसरत खां उ उलुग खां के नेतृत्व में एक बड़ी सेना रणथंभौर पर आक्रमण के लिए भेजी 
उसी समय एक तोप के गोले से नुसरत खा मारा गया और हम्मीर देव चौहान ने भीमसिंह व् धर्मसिंह के नेतृत्व में तुर्को का सामना करने के लिए सेना भेजी, जिसमे तुर्को की पराजय हुई और तुर्कों को जान बचाकर भागना पड़ा।

इस हार से अलाउद्दीन बोखला गया और स्वं अलाउद्दीन खिलजी एक विशाल सेना लेकर रणथम्भोर आ गया था, परंतु एक साल तक दुर्ग की घेराबंदी के बावजूद भी उसको कुछ सफलता नही मिली। तब अलाउद्दीन खिलजी ने छल से संधि का प्रस्ताव भेजा जिसको हम्मी देव ने भाप लिया और दोनों सेनाओ के बिच घमासान युद्ध हुवा जिसमे खिलजी को हार माननी पड़ी और तुर्कों हौसले पस्त हो गए |


कुछ समय बीत हाने के बाद खिलजी ने दोबारा रणथम्भोर पर आक्रमण किया इस बार खिलजी की सेना बहुतविशाल थी | मुस्लिम सेना ने रणथम्भोर किले का घेराव करते हुए आक्रमण किया था। लेकिन दुर्ग रक्षक उन पर पत्थरों, बाणों की बौछार करते, जिससे उनकी सेना का काफी नुकसान होता था। मुस्लिम सेना का इस तरह घेरा बहुत दिनों तक चलता रहा। लेकिन उनका रणथम्भौर पर अधिकार नहीं हो सका।

रतिपाल हम्मीर देव चौहान के सेना पति
दुर्ग का घेराव बहुत दिनों तक चल रहा, जिससे दूर्ग में रसद आदि की कमी हो गई। दुर्ग वालों ने अब अन्तिम निर्णायक युद्ध करने का विचार किया। राजपूतों ने केशरिया वस्त्र धारण करके शाका किया। राजपूत सेना ने दुर्ग के दरवाजे खोल दिए। भीषण युद्ध करना प्रारम्भ किया। दोनों पक्षों में आमने-सामने का युद्ध था। एक ओर संख्या बल में बहुत कम राजपूत थे तो दूसरी ओर खिलजी की कई गुणा बडी सेना, जिनके पास प्रयाप्त युद्धादि सामग्री एवं रसद थी। राजपूतों के वीरता और पराक्रम के सामने मुसलमान सैनिक टिक नहीं सके वे भाग छूटे भागते हुए मुसलमान सैनिको के झण्डे राजपूतों ने छीन लिए व वापस राजपूत सेना दुर्ग की ओर लौट पड़ी। दुर्ग पर से रानियों ने मुसलमानों के झण्डो को दुर्गे की ओर आते देखकर समझा की राजपूत हार गए अतः उन्होंने जोहर कर अपने आपको अग्नि को समर्पित कर दिया। जब राजपूत सेनिक किले में प्रवेश कर रहे थे तब आग की लपटों को देखकर हम्मीर देव चौहान को अपनी भूल का ज्ञान हुआ। उसने प्रायश्चित करने हेतु किले में स्थित शिव मन्दिर पर अपना मस्तक काट कर शंकर भगवान के शिवलिंग पर चढा दिया। अलाउद्दीन को जब इस घटना का पता चला तो उसने लौट कर दुर्ग पर कब्जा कर लिया।

हम्मीर देव चौहान रणथंभौर के प्रसिद्ध राजपूत राजा थे।

हम्मीर देव चौहान का शासनकाल 1283 से 1301 ईस्वी तक था।

रणथंभौर किला राजस्थान राज्य में स्थित है।

हम्मीर देव चौहान की मृत्यु 1301 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी की सेना द्वारा की गई घेराबंदी के दौरान हुई।

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