सिन्धु घाटी सभ्यता- मोहनजोदड़ो

सिन्धु घाटी सभ्‍यता / हड़प्पा सभ्यता

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सिन्धु घाटी सभ्यता भारत की पहली नगरीय सभ्यता थी। इसकी खुदाई में प्राप्त हुए अवशेषों से पता चलता है कि सिन्धु घाटी सभ्यता के लोगों की सोच अत्यंत विकसित थी। उन्होंने पक्के मकानों में रहना आरंभ कर दिया था। चूँकि इस सभ्यता का विकास सिंधु नदी व उसकी सहायक नदियों के आस पास के क्षेत्र में हुआ था, इसीलिए इसे ‘सिन्धु घाटी सभ्यता / सिन्धु सरस्वती सभ्यता का नाम दिया गया है। इस सभ्यता की खुदाई सबसे पहले वर्तमान पाकिस्तान में स्थित ‘हड़प्पा’ नामक स्थल पर हुई थी। अतः इसे ‘हड़प्पा सभ्यता’ भी कहा गया।

भारत और पाकिस्तान में पाया गया सिन्धु घाटी सभ्यता जिसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है, अब तक ज्ञात सभी सभ्यताओं में सबसे प्राचीन है। इसकी खोज 1921 में हुई। इसका विकास सिंधु और घघ्घर/हकड़ा के किनारे हुआ। हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, लोथल, धोलावीरा और राखीगढ़ी इसके प्रमुख केन्द्र थे

सिन्धु घाटी सभ्यता में मिली एक मूर्ति

सिन्धु घाटी सभ्‍यता / हड़प्पा सभ्यता का इतिहास

इस सभ्‍यता के समय काल को लेकर आज भी इतिहासकारों के अलग-अलग राय हैं। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल निर्धारण किया गया है, जो लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है। वहीं पहले की खुदाई और शोध के आधार पर माना जाता था कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4617 वर्ष पूर्व हड़प्पा और मोहनजोदड़ो नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। इस सभ्‍यता को लेकर सबसे नवीनतम खोज आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा की गई है। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सभ्यता 8000 साल पुरानी थी। इस लिहाज से यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। मिस्र की सभ्यता 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मेसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी शोधकर्ता ने इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता से 1,0000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं। दिसम्बर 2014 में भिरड़ाना को सिन्धु घाटी सभ्यता का अब तक का खोजा गया सबसे प्राचीन नगर माना गया है। ब्रिटिश काल में हुई खुदाइयों के आधार पर पुरातत्ववेत्ता और इतिहासकारों का अनुमान है कि यह अत्यंत विकसित सभ्यता थी और ये शहर अनेक बार बसे और उजड़े हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता

सिन्धु घाटी सभ्यता में मिली मुहर

हड़प्पाई मुहर संभवतः हड़प्पा अथवा सिन्धु घाटी सभ्यता की सबसे विशिष्ट पुरावस्तु हैं. सेलखड़ी नामक पत्थर से बने गई इन मुहरो पर सामान्य रूप से जानवरों के चित्र तथा एक ऐसी लिपि के चीन उत्कीर्णत हैं जीने अभी तक पढ़ा नहीं जा सका हैं. फिर भी हमें इस क्षेत्र में उस समय बसे लोगों के जीवन के विषय में उनके द्वारा पीछे छोड़ी गई पुरावस्तुवो- जेसे अनेक आवासों, मर्दभांडो, आभूषणों, ओजरो तथा मुहरो- दुसरे शब्दों में पुरातात्विक साक्ष्यो के माध्यम से बहुत जानकारी मिलती हैं. अब हम देखेंगे की हड़प्पा सभ्यता के बारे में क्या और केसे जानते हैं

सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई में मिली मुहरे

सिन्धु घाटी सभ्यता का काल तथा स्थान

को हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता हैं ‘पुरातत्वविद ‘संस्कृति’ शब्द का प्रयोग पुरावस्तुओं के ऐसे समूह के लिए करते हैं जो एक विशिष्ट शेली के होते हैं और सामान्यतया एक साथ, एक विशेष भोगिलिक क्षेत्र तथा काल – खंड से संबध पाए जाते हैं. हड़प्पा सभ्यता के सन्दर्भ में एक विशिष्ट पुरावस्तुओं में मुहरे, मनके, बाट, पत्थर के फलक और पक्की हुई इंठे सम्मिलित हैं ये वस्तुएँ अफ़गानिस्तान, जम्मू, बलूचिस्तान (पाकिस्तान) तथा गुजरात जैसे क्षेत्रों से मिली हैं जो एक दूसरे से लंबी दूरी पर स्थित हैं इस सभ्यता का नामकरण, हड़प्पा नामक स्थान, जहाँ यह संस्कृति पहली बार खोजी गई थी (पृष्ठ 6), के नाम पर किया गया है। इसका काल निर्धारण लगभग 2600 और 1900 ईसा पूर्व के बीच किया गया है। इस क्षेत्र में इस सभ्यता से पहले और बाद में भी संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं जिन्हें क्रमशः आरंभिक तथा परवर्ती हड़प्पा कहा जाता है। इन संस्कृतियों से हड़प्पा सभ्यता को अलग करने के लिए कभी-कभी इसे विकसित हड़प्पा संस्कृति भी कहा जाता है।

सिन्धु घाटी सभ्यता का आरंभ

इस क्षेत्र में विकसित हड़प्पा से पहले भी कई संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। ये संस्कृतियाँ अपनी विशिष्ट मृदभाण्ड शैली से संबद्ध थीं तथा इनके संदर्भ में हमें कृषि, पशुपालन तथा कुछ शिल्पकारी के साक्ष्य भी मिलते हैं। बस्तियाँ आमतौर पर छोटी होती थीं और इनमें बड़े आकार की संरचनाएँ लगभग न के बराबर थीं। कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर इलाकों में जलाए जाने के संकेतों से तथा कुछ अन्य स्थलों के त्याग दिए जाने से ऐसा प्रतीत होता है कि आरंभिक हड़प्पा तथा हड़प्पा सभ्यता के बीच क्रम भंग था ।

सिन्धु घी सभ्यता में मिला विशाल स्नानाघर

सिन्धु घाटी सभ्यता में निर्वाह के तरीके

विकसित हड़प्पा संस्कृति कुछ ऐसे स्थानों पर पनपी जहाँ पहले आरंभिक हड़प्पा संस्कृतियाँ अस्तित्व में थीं। इन संस्कृतियों में कई तत्व जिनमें निर्वाह के तरीके शामिल हैं, समान थे। हड़प्पा सभ्यता के निवासी कई प्रकार के पेड़-पौधों से प्राप्त उत्पाद और जानवरों जिनमें मछली भी शामिल है, से प्राप्त भोजन करते थे। जले अनाज के दानों तथा बीजों की खोज से पुरातत्वविद आहार संबंधी आदतों के विषय में जानकारी प्राप्त करने में सफल हो पाए हैं। इनका अध्ययन पुरा – वनस्पतिज्ञ करते हैं जो प्राचीन वनस्पति के अध्ययन के विशेषज्ञ होते हैं। हड़प्पा स्थलों से मिले अनाज के दानों में गेहूँ, जौ, दाल, सफ़ेद चना तथा तिल शामिल हैं। बाजरे के दाने गुजरात ‘के थों से प्राप्त हुए थे। चावल के दाने अपेक्षाकृत कम पाए गए हैं। हड़प्पा स्थलों से मिली जानवरों की हड्डियों में मवेशियों, भेड़, बकरी, भैंस तथा सूअर की हड्डियाँ शामिल हैं। पुरा – प्राणिविज्ञानियों अथवा जीव- पुरातत्वविदों द्वारा किए गए अध्ययनों से संकेत मिलता है कि ये सभी जानवर पालतू थे। जंगली प्रजातियों जैसे वराह (सूअर), हिरण तथा घड़ियाल की हड्डियाँ भी मिली हैं। हम यह नहीं जान पाए हैं कि हड़प्पा – निवासी स्वयं इन जानवरों का शिकार करते थे अथवा अन्य आखेटक समुदायों से इनका मांस प्राप्त करते थे। मछली तथा पक्षियों की हड्डियाँ भी मिली हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता

सिन्धु घाटी सभ्यता में कृषि प्रौद्योगिकी

हालाँकि अनाज के दानों से कृषि के संकेत मिलते हैं पर वास्तविक कृषि विधियों के के क्षेत्र विषय में स्पष्ट जानकारी मिलना कठिन है। क्या जुते हुए खेतों में बीजों का छिड़काव किया जाता था ? मुहरों पर किए गए रेखांकन तथा मृण्मूर्तियाँ यह इंगित करती हैं कि वृषभ के विषय में जानकारी थी और इस आधार पर पुरातत्वविद यह मानते हैं कि खेत जोतने के लिए बैलों का प्रयोग होता था। साथ ही चोलिस्तान के कई स्थलों और बनावली (हरियाणा) से मिट्टी से बने हल के प्रतिरूप मिले हैं। इसके अतिरिक्त पुरातत्वविदों को कालीबंगन ( राजस्थान ) नामक स्थान पर जुते हुए खेत का साक्ष्य मिला है जो आरंभिक हड़प्पा स्तरों से संबद्ध है। इस खेत में हल रेखाओं के दो समूह एक-दूसरे को समकोण पर काटते हुए विद्यमान थे जो दर्शाते हैं कि एक साथ दो अलग-अलग फ़सलें उगाई जाती थीं। पुरातत्वविदों ने फ़सलों की कटाई के लिए प्रयुक्त औज़ारों को पहचानने का प्रयास भी किया है। क्या हड़प्पा सभ्यता के लोग लकड़ी के हत्थों में बिठाए गए पत्थर के फलकों का प्रयोग करते थे या फिर वे धातु के औज़ारों का प्रयोग करते थे? अधिकांश हड़प्पा स्थल अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में स्थित हैं जहाँ संभवतः कृषि के लिए सिंचाई की आवश्यकता पड़ती होगी। अफ़गानिस्तान में शोर्तुघई नामक हड़प्पा स्थल से नहरों के कुछ अवशेष मिले हैं, परंतु पंजाब और सिंध में नहीं। ऐसा संभव है कि प्राचीन नहरें बहुत पहले ही गाद से भर गई थीं। ऐसा भी हो सकता है कि कुओं से प्राप्त पानी का प्रयोग सिंचाई के लिए किया जाता हो। इसके अतिरिक्त धौलावीरा (गुजरात) में मिले जलाशयों का प्रयोग संभवत: कृषि के लिए जल संचयन हेतु किया जाता था।

पुरावस्तुओं की पहचान कैसे की जाती थी सिन्धु घाटी सभ्यता में

सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई में मिले मर्द भांड
भोजन तैयार करने की प्रक्रिया में अनाज पीसने के यंत्र तथा उन्हें आपस में मिलाने, मिश्रण करने तथा पकाने के लिए बरतनों की आवश्यकता थी। इन सभी को पत्थर, धातु तथा मिट्टी से बनाया जाता था । यहाँ एक महत्वपूर्ण हड़ङ्ख्या रथल गोहनजोदड़ो में हुए उत्खननों पर राब आरंभिक रिपोर्टों में से एक से कुछ उद्धरण दिए जा रहे हैं: अवतल चक्कियाँ… बड़ी संख्या में मिली हैं… और ऐसा प्रतीत होता है कि अनाज पीसने के लिए प्रयुक्त ये एकमात्र साधन थीं। साधारणतः ये चक्कियाँ स्थूलतः कठोर, कंकरीले, अग्निज अथवा बलुआ पत्थर से निर्मित थीं और आमतौर पर इनसे अत्यधिक प्रयोग के संकेत मिलते हैं। चूँकि इन चक्कियों के तल सामान्यतया उत्तल हैं, निश्चित रूप से इन्हें ज़मीन में अथवा मिट्टी में जमा कर रखा जाता होगा जिससे इन्हें हिलने से रोका जा सके। दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ मिली हैं। एक वे हैं जिन पर एक दूसरा छोटा पत्थर आगे-पीछे चलाया जाता था, जिससे निचला पत्थर खोखला हो गया था, तथा दूसरी वे हैं जिनका प्रयोग संभवतः केवल सालन या तरी बनाने के लिए जड़ी-बूटियों तथा मसालों को कूटने के लिए किया जाता था। इन दूसरे प्रकार के पत्थरों को हमारे श्रमिकों द्वारा ‘सालन पत्थर’ का नाम दिया गया है तथा हमारे बावर्ची ने एक यही पत्थर रसोई में प्रयोग के लिए संग्रहालय से उधार माँगा है। अर्नेस्ट मैके फर्दर एक्सकैवेशन्स एट मोहनजोदड़ो, 1937 से उद्धृत

मोहनजोदड़ो

एक नियोजित शहरी केंद्र

संभवत: सिन्धु घाटी सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता का सबसे अनूठा पहलू शहरी केंद्रों का विकास था। आइए ऐसे ही एक केंद्र, मोहनजोदड़ो को और सूक्ष्मता से देखते हैं। हालाँकि मोहनजोदड़ो सबसे प्रसिद्ध पुरास्थल है, सबसे पहले खोजा गया स्थल हड़प्पा था। बस्ती दो भागों में विभाजित है, एक छोटा लेकिन ऊँचाई पर बनाया गया और दूसरा कहीं अधिक बड़ा लेकिन नीचे बनाया गया। पुरातत्वविदों ने इन्हें क्रमश: दुर्ग और निचला शहर का नाम दिया है। दुर्ग की ऊँचाई का कारण यह था कि यहाँ की संरचनाएँ कच्ची ईंटों के चबूतरे पर बनी थीं। दुर्ग को दीवार से घेरा गया था जिसका अर्थ है कि इसे निचले शहर से अलग किया गया था। निचला शहर भी दीवार से घेरा गया था। इसके अतिरिक्त कई भवनों को ऊँचे चबूतरों पर बनाया गया था जो नींव का कार्य करते थे। अनुमान लगाया गया है कि यदि एक श्रमिक प्रतिदिन एक घनीय मीटर मिट्टी ढोता होगा, तो मात्र आधारों को बनाने के लिए ही चालीस लाख श्रम दिवसों, अर्थात् बहुत बड़े पैमाने पर श्रम की आवश्यकता पड़ी होगी। अब कुछ और देखिए । एक बार चबूतरों के यथास्थान बनने के बाद शहर का सारा भवन-निर्माण कार्य चबूतरों पर एक निश्चित क्षेत्र तक सीमित था । इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि पहले बस्ती का नियोजन किया गया था और फिर उसके अनुसार कार्यान्वयन । नियोजन के अन्य लक्षणों में ईंटें शामिल हैं जो भले ही धूप में सुखाकर अथवा भट्ठी में पकाकर बनाई गई हों, एक निश्चित अनुपात की होती थीं, जहाँ लंबाई और चौड़ाई, ऊँचाई की क्रमशः चार गुनी और दोगुनी होती थी। इस प्रकार की ईंटें सभी हड़प्पा बस्तियों में प्रयोग में लाई गई थीं।
मोहनजोदड़ो दुर्ग, सिन्धु घाटी सभ्यता में मिले दुर्ग का नक्षा

नालो का निर्माण

हड़प्पा शहरों की सबसे अनूठी विशिष्टताओं में से एक ध्यानपूर्वक नियोजित जल निकास प्रणाली थी। यदि आप निचले शहर के नक्शे को देखें तो आप यह जान पाएँगे कि सड़कों तथा गलियों को लगभग एक ‘ग्रिड’ पद्धति में बनाया गया था और ये एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले नालियों के साथ गलियों को बनाया गया था और फिर उनके अगल-बगल आवासों का निर्माण किया गया था। यदि घरों के गंदे पानी को गलियों की नालियों से जोड़ना था तो प्रत्येक घर की कम से कम एक दीवार का गली से सटा होना आवश्यक था।

मोहनजोदड़ो में बना एक विशाल नाला

सिन्धु घाटी सभ्यता का निचला दुर्ग

हालाँकि अधिकांश हड़प्पा बस्तियों में एक छोटा ऊँचा पश्चिमी तथा एक बड़ा लेकिन निचला पूर्वी भाग है, पर इस नियोजन में विविधताएँ भी हैं। धौलावीरा तथा लोथल (गुजरात) जैसे स्थलों पर पूरी बस्ती किलेबंद थी, तथा शहर के कई हिस्से भी दीवारों से घेर कर अलग किए गए थे। लोथल में दुर्ग दीवार से घिरा तो नहीं था पर कुछ ऊँचाई पर बनाया गया था।

सिंधु घाटी सभ्यता लगभग 3300 ईसा पूर्व शुरू हुई थी।

हड़प्पा और मोहनजोदड़ो प्रमुख नगर थे।

वे एक अद्रवण भाषा का उपयोग करते थे, जिसका लेखन पद्धति अभी तक पूरी तरह से समझी नहीं गई है।

इसके पतन के संभावित कारणों में जलवायु परिवर्तन, प्राकृतिक आपदाएँ और आक्रमण शामिल हो सकते हैं।

दयाराम सहनी ने सन 1921-1922 में 

ग्रिड पद्दति (दो रेखाओ का समकोण पर काटने जैसा +)

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